(नागपत्री एक रहस्य-33)
इस दुनिया में कुछ भी काल्पनिक नहीं होता, वो कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में अवश्य घटित होता है, क्योंकि हमारा मस्तिष्क यूं ही कुछ नहीं सोचता। इस विशाल ब्रह्मांड में कभी न नष्ट होने वाली तरंगें जो किसी घटना के घटित होने या घटित होने से पूर्व के संकेत होती है, या यूं कहा जाए कि जब अनादिकाल में समय करवट लेकर किसी घटना की पूर्णा आवृत्ति करता है, तब उत्पन्न होने वाली किरणें हमारा मस्तिष्क पकड़कर उन्हें हमारी सोच में परिवर्तित कर देता है।
हां ये अवश्य है कि किसी स्थान पर विशिष्ट वातावरण उसके प्रभाव को कम या ज्यादा कर सकता है, इसलिए यदि तुम्हें बार-बार स्वप्न में ऐसा कुछ दिखे, या रह-रहकर तुम्हें उसी चीज का ख्याल आए, चेतन या अचेतन की स्थिति में वे सभी अवश्य ही किसी विशेष स्थिति या घटना की ओर संकेत करता है।
क्या तुम्हें पता है कि जब कोई अपना मुसीबत में होता है, तो दूर बैठे व्यक्ति जो उसका प्रिय हो, असहज महसूस करने लगता है, अचानक उसके दिल की धड़कने बढ़ने लगती है, भला बताओ ऐसा क्यों होता है क्या इस बात का किसी के पास जवाब है..
नहीं ना, वास्तव में ऐसा इसलिए होता है कि हर इंसान का मस्तिष्क किसी रेडियो स्टेशन से कम नहीं, जो अपनों के कोसों दूर होने पर भी उनकी मानसिक तरंगों से संकेत लेता और देता रहता है ।
भले ही कोई माने या ना माने जितनी बार हम किसी को याद करते हैं, उतनी ही बार वह भी एक पल के लिए हमारे बारे में सोचने को विवश हो जाता है, या सोच रहा होता है।
तभी थोड़ी सी भी परेशानी होने पर जब हम किसी प्रिय को पुकारते हैं, तो वह विचलित हो उठता है, क्योंकि तब हमारे मस्तिष्क से निकलने वाली किरणें बिल्कुल स्पष्ट और मजबूर होती है, और किसी एक व्यक्ति के होने के कारण वह उनको तुरंत अनुभव कर लेता है और विचलित हो उठता है।
लक्षणा अपने दादाजी की बातें बड़ी गौर से सुन रही थी, क्योंकि उसे पूर्ण विश्वास था कि उसके दादाजी कभी भी असत्य या निराधार तथ्यों पर ना तो विचार करते हैं, और ना ही बात करते हैं।
लेकिन क्या उसके मस्तिष्क के में उठने वाले सवाल और विचार का संपर्क सूत्र वाकई किसी घटना से होगा, यदि हां तो ऐसा कैसे हो सकता है?? क्योंकि जो उसे प्रतिदिन आजकल बहुत से ताम्रपत्र जो बिखरे हुए हैं दिखाई देते हैं, और एक रस्सी नुमा सर्प उन्हें संकलित कर एक सूत्र में बांध देता है, और अचानक उन ताम्रपत्र से तैयार हो एक पुस्तकनुमा आकृति पूर्ण तेज से चमकने लगती है और देखते ही देखते वह सिर्फ एक रस्सी का स्वरूप ले लेता है।
और वे तेज चमकने वाले ताम्रपत्र के गुच्छे के पास एक विशेष यंत्रों का उपचार और स्वर सुनाई देता है, और तभी विस्फोट के साथ वहां एक विशाल नाग उपस्थित होता है , और ऐसा लगता है जैसे वह ताम्रपत्र की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, और वह उन ताम्रपत्र को अपने घेरे में ले खड़ा हो जाता है।
यह सब लक्षणा अपने सामने होते हुए देखती है, जैसे वह इन सबकी प्रत्यक्ष दर्शी हो, और उन ताम्रपत्र को पढ़ना चाहती है।
लेकिन तभी अचानक उसकी नींद खुल जाती है, और यह सब उसने एक बार में नहीं अपितु अनेकों बार अपने सपनों में देखा है, जिसके बारे में आज तक उसने किसी को भी कुछ नहीं बताया।
क्योंकि उसके दादाजी के कहे अनुसार रहस्यमय स्वप्न का विवेचन यूं ही हर किसी के समक्ष नहीं करना चाहिए, वरना उन स्वप्न की सार्थकता शक्ति या प्रभाव समाप्त हो जाती है, और स्वप्न कई बार दिखाई देने वाली क्रियाओं के ठीक विपरीत स्वभाव वाले होते है ।
स्वप्न में किसी को मरा हुआ देखना उसकी आयु बढ़ जाना होता है, वहीं स्वप्न में धन प्राप्त होने का अवसर विपरीत प्रभाव देखा गया है, बहुत से स्वप्न अक्सर ऐसे ही होते हैं।
इसके लिए अच्छा है कि यदि उचित ज्ञान प्राप्त कर या फिर किसी सक्षम व्यक्ति के समक्ष जो संकल्पित हो अपनी बात रखें, और उनका सही अर्थ समझे, अन्यथा यूं ही सपने की चर्चा करना, केवल बेवकूफी के कुछ भी नहीं।
बिल्कुल ठीक उसी तरह जैसे मुट्ठी में नमक ले व्यर्थ ही पानी में डूबोना, उससे पानी और नमक के साथ-साथ हाथ को भी नुकसान है, वहीं उस नमक का अंश मात्र उचित मात्रा के साथ यदि खाने में डाला जाए तो वह उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करता है, यह कहते हुए दादाजी ने अपनी वाणी को विराम दिया, और पूछा क्या हुआ??
यदि कोई विशेष स्वप्न तुम्हें बार-बार परेशान कर रहा हो तो मैं तुम्हें यही राय दूंगा कि बेकार परेशान होने से अच्छा पहले तुम अपनी अधिष्ठात्री देवी नाग माता की शरण में जाओ, और सुबह पूजन के पश्चात एकाग्र मन से उन्हें स्मरण कर मन ही मन ध्यान मुद्रा में जाकर अपना स्वप्न उन्हें सुनाओ, तुम्हें अवश्य सही जानकारी प्राप्त होगी।
यदि ऐसा करने में तुम बार-बार असफल होती हो, तब आवश्यकता पड़ने पर मैं खुद तुम्हारी सहायता करूंगा, हम जल्द ही हमारे पंडित जी को बुलाकर इस बात पर विचार करेंगे, ठीक है परेशान मत हो, यह कहते हुए उन्होंने लक्षणा के सिर पर हाथ रखा और मुस्कुराते हुए चले गए।
लक्षणा को एक बात तो स्पष्ट हो गई कि दादाजी के कहे अनुसार उसे यह दिव्य स्वप्न हर किसी को नहीं बताता, और प्रथम प्रयास उसे स्वयं ही करना चाहिए, क्योंकि बचपन से लेकर आज तक पारिवारिक माहौल के कारण लक्षणा पूजा-पाठ भक्ति आराधना के साथ विशेष ध्यान पूजन की शिक्षा ले चुकी थी।
उसने अपने उम्र की लड़कियों की तरह कभी भी व्यर्थ समय नहीं गवाया, उसकी रुचि उन नौ कुमारियों से बेफिजूल की बातों की बजाय उसका ध्यान अपने पढ़ाई के अलावा यदि कहीं और केंद्रित होता तो वह स्थान था उसके दादाजी के आध्यात्मिक किताबों से भरी अलमारी, जहां अक्सर खाली समय में उसे आराम से पढा जा सकता है।
क्योंकि वह अक्सर अपने दादाजी के साथ बचपन में पहले उनकी नकल करते हुए शास्त्रों को हाथ में लेकर उसमें बने चित्रों को देखते रहती और अपने दादाजी से उस विषय में प्रश्न भी करती है, और उसी कारण उसकी रुचि धीरे-धीरे धार्मिक ग्रंथों में बढ़ती चली गई, और अब वह अपना अधिकतर समय उसके अध्ययन में बिताती।
आज महज सत्रह साल की उम्र में उसने संस्कृत भाषा में अपनी अच्छी पकड़ बना ली, और शास्त्रों में निहित कठिन से कठिन शब्दों का सही अर्थ वाद विवाद की स्थिति में किसी बड़े व्यक्ति की तरह परिवार में पेश करती थी ।
क्रमशः...
Mohammed urooj khan
25-Oct-2023 02:35 PM
👍👍👍👍
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Abhinav ji
09-Aug-2023 05:12 PM
Nice
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